प्रतापगढ़।जन प्रतिनिधि ईमानदार हो यह सभी चाहते हैंकहते भी हैं और होना भी चाहिए।किन्तु हमारे जनप्रतिनिधि आखिर इतनी कोशिशों के बाद भी ईमानदार क्यों नहीं हो पा रहे हैं।क्या आप सभी ने कभी इसका विश्लेषण किया या करने की कोशिश की।इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण कहीं न कहीं हम आप और अपने जनप्रतिनिधि से हमारी आपकी नाजायज़ अपेक्षाएं हैं।हम चाहते हैं कि हमारा जनप्रतिनिधि बाहुबली हो जो 20-25 बड़ी- बड़ी गाड़ियों के काफिले में चले।हम जब भी दशहरा,दीपावली, रामलीला,ईद,बकरीद इत्यादि मनाये वह इसमें शिरकत करे।बात सही भी है आखिर जनप्रतिनिधि जो ठहरा।उसे शिरकत करना भी चाहिए।अब अगर वह आया और उसने कमजोर लिफाफा दे दिया तो फिर आफत।विधायक जी आये और 501 देकर चले गये।इससे बेहतर तो वह पहले वाले थे जो 5100 देते थे।अब आप सोचिए हर विधानसभा में ऐसे उत्सवों की संख्या 5 वर्षों में कम से कम 10,000 से कम तो होती नहीं होगी और हर जगह विधायक जी का जाना संभव भी नहीं हो पाता होगा।अब जहां वह गये और लिफाफा कमजोर दिये वह नाराज।जहां नहीं गये और लिफाफा भिजवा दिया वह नाराज।अगर विधायक ईमानदार है गाली गलौज नहीं करता है तो वह कायर है,डरपोक है, अधिकारियों से डरता है।ऐसी अफवाहें फैलने में देर नहीं लगती।तो वह बेचारा भी जन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए शुरू करता है दलाली, कमीशनखोरी, गाड़ियों का लंबा काफिला और इसे करते करते वह कब ईमानदार से बेईमान हो जाता है ये पता ही नहीं चल पाता।अतः हमारी आपकी भी जिम्मेदारी है कि हम आप भी अपने जनप्रतिनिधि को अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं के बोझ के नीचे न दबने दे बल्कि उसे वह करने दें जिसके लिए उसे बड़े अरमानों से चुना था।
